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Thursday, April 9, 2015

मन की बात

Listening to Uth Bhorhttp://www.sonymusic.com/ on Sony Music Jive on Sony C1504 !

Saturday, January 29, 2011

आह्वान: आओ कदम बढ़ाएं

                  सर्वप्रथम आप सभी को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं| उम्मीद करती हूँ कि आपके नए वर्ष की शुरुआत खूब अच्छी हुयी होगी | 

                 अपने देश की प्रगति देखते  हुए बड़ा गर्व महसूस होता है| टीवी पर गणतंत्र दिवस की परेड देख रही थी बहुत अच्छा लगा, बड़ा गर्व महसूस हुआ, हर बार इस तरह के आयोजन देखकर मन बड़ा प्रसन्न हो जाता है, पता चलता है कि देश कितनी उन्नति पर है, एक क्षण के लिए तो हम भूल ही जाते हैं कि ये वही देश है जिसके बारे में पिछले दिन टीवी या अखबार में भ्रष्टाचार के मामले में नए-नए कीर्तिमानों की बात हो रही थी या अगले दिन पुनः ऐसा ही कोई नया घपला-घोटाला सुनने, पढने या देखने को मिलेगा |
               किसी भी सरकारी या गैर सरकारी विभाग में जाईये तो मालूम चलता है कि हर जगह भ्रष्टाचार चरम पर है और इसकी जड़ें बहुत गहरी | आम आदमी खुद को ठगा सा महसूस कर रहा है| अपराधों का ग्राफ भी इतना बढ़ गया है कि कोई भी सुरक्षित नहीं है खासकर महिलाएं और बच्चे| अपराधियों की बात तो छोड़ ही दीजिए आज के समय में तो जनता का विश्वास पुलिस, प्रशासन या किसी भी जिम्मेदार पद पर बैठे व्यक्ति से भी उठ चुका है | जनता को समझ में नहीं आ रहा है कि किस पर भरोसा किया जाए और किस पर नहीं | अदालतों में लाखों कारोड़ों मुकदमे लंबित पड़े हैं, पुलिस कई घटनाओ को एफ.आई.आर. तक में दर्ज़ नहीं करती | आम आदमी को न्याय मिलना बहुत कठिन है| न्याय की बात तो दूर आम आदमी तो इलाज़ भी नहीं करा सकता, और खुदा न करे पर अगर किसी प्राइवेट अस्पताल में उसकी मौत ही हो जाए तो अस्पताल वाले बिना फीस के उसकी लाश भी नहीं सौंपते, सरकारी अस्पतालों का तो और भी बुरा हाल है वहाँ न आपको डॉक्टर मिलेगा न दवा, और अगर खुश-किस्मती से डॉक्टर और दवा दोनों मिल जाए तो भी भरोसा नहीं कि आप ठीक हो ही जाएँ | क्योंकि अगर ठीक होना है तो आपको सरकारी डॉक्टर के प्राइवेट क्लीनिक में ही जाना पड़ेगा नहीं तो कुछ बात नहीं बनने वाली|
              हर बार हर जगह नया भ्रष्टाचार सामने आता है, पुराना तो भुला दिया जाता है नए की बात होने लगती है, हम भारतवासियों की ये ही सबसे बड़ी खूबी है कि हम ज्यादा दिनों तक पुरानी दुखभरी बातें याद नहीं रखते, और आगे बढ़ जाते हैं| लेकिन क्या सच में ये हमारी खूबी ही है? क्या हमें अतीत से सबक नहीं लेना चाहिए? क्यूँ हम लोग शान्ति से हर बात.... लगभग हर बात सहते ही चले जाते हैं? क्या विरोध करने के लिए हमारे पास सामर्थ्य नहीं है? या हमने चुप रहने  और सहन करते रहने की आदत ही बना ली है|
                इस देश के भ्रष्ट तंत्र को खत्म करने का हमें दृढ़ संकल्प लेना होगा| हर किसी को अपने स्तर से इसके लिए जागरूक होना ही पड़ेगा क्योंकि सिर्फ शिकायत करने या प्रश्न करने से कुछ नहीं हासिल होगा| हर व्यक्ति जब तक नहीं समझेगा कि उसके वास्तविक अधिकार एवं कर्तव्य क्या हैं और जब तक वो इनका अनुपालन नहीं करेगा तब तक कुछ भी सार्थक होने से रहा|

              मेरा तो मानना है कि अभी  देर नहीं हुयी है| हम अब भी देश की तस्वीर और तकदीर बदल सकते हैं| मैं अपने पोस्ट के माध्यम से सभी पाठकों को खासकर युवा पाठकों को कहना चाहूंगी कि जो भी करें ईमानदारी एवं पूर्ण निष्ठा से करें, चाहे काम बड़ा हो या छोटा ही क्यों न हो| जो भी काम करें मेहनत व ईमानदारी से करें, जनहित एवं देशहित में करें| मानती हूँ कि एक आदमी कुछ खास बदलाव नहीं ला सकता लेकिन अपनी तरफ से एक ईमानदार कोशिश तो कर ही सकता है| क्या पता एक छोटा कदम दूसरों के लिए प्रेरणा बन जाए और इस तरह अच्छे कामों का एक सिलसिला ही शुरू हो जाए| मै आप सभी का आह्वान करती हूँ कि आइये हम सब मिलकर ये प्रण लें कि आज से हम ईमानदारी को प्राथमिकता देंगे चाहे इस राह में हमे कितनी ही मुश्किलों का सामना करना पड़े लेकिन इसी राह पर चलेंगे और मंजिल तक पहुंचेंगे | पोस्ट लिखते-लिखते मुझे डॉ. बच्चन जी की एक मशहूर कविता याद आ गयी है : 

लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती ,
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती ||

नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है ,
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है |
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है,
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है|
आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती||

डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है,
जा जा कर खाली हाथ लौटकर आता है |
मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में,
बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में |
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती ||

असफलता एक चुनौती है, इसे स्वीकार करो,
क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो |
जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम,
संघर्ष का मैदान छोड़ कर मत भागो तुम |
कुछ किये बिना ही जय जय कार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती ||

बात गणतंत्र दिवस की परेड से शुरू की थी तो समाप्त भी उसी पर करना चाहूंगी| मैंने तो परेड देख के ये सोचा है कि जिस तरह ये सैनिक एक साथ कदम से कदम मिलाकर आगे बढते हैं और सारा दृश्य मनोहारी बन जाता है उसी प्रकार क्यों न हम भी एक जुट होकर चलें और समाज और देश को सुन्दर बनायें, क्योंकि अलग अलग आपनी अपनी राह पर तो सभी चल ही रहे हैं परन्तु उस चलने में वो बात नहीं जो साथ मिलकर चलने 

में है|





Wednesday, January 5, 2011

मन की बात

पर्यावरण सरंक्षण किसी भी अन्य मुद्दों में से आज सबसे अहम मुद्दा है, जितने चिंतित हम आतंकवाद, भ्रष्टाचार या अन्य किसी और मसले को लेकर हैं उससे कहीं अधिक चिंता हमे अपने पर्यावरण की होनी चाहिए | आज का मानव बहुत हद तक पर्यावरण से दूर होता जा रहा है केवल कुछ गिने चुने लोग ही इस क्षेत्र में सकारात्मक कार्य करते नज़र आ रहे हैं | वर्तमान में मनुष्य की प्रवृत्ति केवल पृथ्वी के दोहन में है, मिसाल के तौर पर उत्तराखंड को ही लीजिए कभी यह प्रदेश अपने हरे भरे जंगलो एवं स्वच्छ जल वायु के लिए विश्व प्रसिद्द था परुन्तु आज सिर्फ नाम ही बाकी है असल हालत इसके विपरीत नज़र आते हैं, पर्यटन को बढ़ावा देने की होड़ में जंगलों का बड़े पैमाने पर सफाया किया जा रहा है| सरकार एवं निजी कंपनियां अपनी मनमानी कर रही हैं, पर्यटक आ कर चारों ओर गंदगी फैलाकर चले जाते हैं और जनता उदासीन बैठी है, लगता ही नहीं ये वो ही उत्तराखंड प्रदेश है जहाँ
चिपको- आन्दोलन जैसा ऐतिहासिक आंदोलन हुआ | आज ज्यादातर उत्तराखंड वासी अपने गाँव को छोडकर पलायन कर गए हैं शेष बचे लोगों में से भी अधिकतर ये ही चाहते हैं कि उनका बसेरा भी किसी देहरादून या उस जैसे सुगम स्थल पर हो| परन्तु फिर भी कुछ जिम्मेदार एवं जागरूक लोग अपने स्वहित त्याग कर पर्यावरण सरंक्षण में लगे है |
यदि हम सब लोग भी इस क्षेत्र में छोटी ही सही एक पहल करें तो शायद हालत कुछ ठीक हो सकते हैं | इस ब्लॉग को पढ़ने वाले सभी पाठकों से मेरा अनुरोध है कि हर साल कम से कम एक बार अपने गाँव जाएँ वाह कुछ पेड़-पौधे अवश्य लगाएं एवं प्रक्रति का लुत्फ़ उठायें|

पृथ्वी सूक्त ११ में भी कहा गया है कि यदि हम पृथ्वी को प्रकृति और पर्यावरण के सम्बन्ध में सरंक्षण दें तो पृथ्वी हमे भी सरंक्षण प्रदान करेगी जैसे समय पर वर्षा, सर्दी व गर्मी रहेगी | प्रकृति, पर्यावरण और जीव एक दूसरे के पूरक हैं वेदों में प्रकृति को सुख, शांति और समृद्धि का आधार माना गया है | प्रकृति के अनुरूप जीवन तथा त्रुटियों के अनुरूप भोजन को उत्तम बताया गया है |
ऋग-वेद में कहा गया है कि "हे मनुष्यों प्रकृति का स्वागत करो , नए पेड़ लगा कर उत्सव मनाओ नए फूलों के खिलने का आनंद मनाओ प्रकृति जीवन सुधा है , इसे विष में परिवर्तित न होने दो यही जीवन का आधार है आश्रम है और हमारे भूत भविष्य तथा वर्तमान कि पालनहार है "|
पृथ्वी सूक्त में कहा गया है कि "इस पृथ्वी में अपार शक्ति है | इसमें वनस्पतियां, औषधियां एवं सभी प्रकार के जीवन दाई तत्व हैं इसलिए, इसकी संरक्षा करो इसे पुत्रवत संरक्षण प्रदान करो तथा इससे मित्रवत मिलो |

Sunday, December 19, 2010

सचिन को बधाई

महान क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर जी को उनके  टेस्ट कैरियर के ५० वें शतक लगाने पर हार्दिक बधाई | सचिन जी ने यह ऐतिहासिक शतक सुपर स्पोर्ट  पार्क सेंचुरियन में जमाया है | 
सचिन जी आपके विषय में तो केवल यह ही कहा जा सकता है :
                               न भूतो न भविष्यति |
सचिन जी उम्मीद करते हैं की आगामी विश्व कप में भी आपका यही करिश्मा देखने को मिलेगा |
                            
                                                                                                                 -आभार