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Wednesday, January 5, 2011

मन की बात

पर्यावरण सरंक्षण किसी भी अन्य मुद्दों में से आज सबसे अहम मुद्दा है, जितने चिंतित हम आतंकवाद, भ्रष्टाचार या अन्य किसी और मसले को लेकर हैं उससे कहीं अधिक चिंता हमे अपने पर्यावरण की होनी चाहिए | आज का मानव बहुत हद तक पर्यावरण से दूर होता जा रहा है केवल कुछ गिने चुने लोग ही इस क्षेत्र में सकारात्मक कार्य करते नज़र आ रहे हैं | वर्तमान में मनुष्य की प्रवृत्ति केवल पृथ्वी के दोहन में है, मिसाल के तौर पर उत्तराखंड को ही लीजिए कभी यह प्रदेश अपने हरे भरे जंगलो एवं स्वच्छ जल वायु के लिए विश्व प्रसिद्द था परुन्तु आज सिर्फ नाम ही बाकी है असल हालत इसके विपरीत नज़र आते हैं, पर्यटन को बढ़ावा देने की होड़ में जंगलों का बड़े पैमाने पर सफाया किया जा रहा है| सरकार एवं निजी कंपनियां अपनी मनमानी कर रही हैं, पर्यटक आ कर चारों ओर गंदगी फैलाकर चले जाते हैं और जनता उदासीन बैठी है, लगता ही नहीं ये वो ही उत्तराखंड प्रदेश है जहाँ
चिपको- आन्दोलन जैसा ऐतिहासिक आंदोलन हुआ | आज ज्यादातर उत्तराखंड वासी अपने गाँव को छोडकर पलायन कर गए हैं शेष बचे लोगों में से भी अधिकतर ये ही चाहते हैं कि उनका बसेरा भी किसी देहरादून या उस जैसे सुगम स्थल पर हो| परन्तु फिर भी कुछ जिम्मेदार एवं जागरूक लोग अपने स्वहित त्याग कर पर्यावरण सरंक्षण में लगे है |
यदि हम सब लोग भी इस क्षेत्र में छोटी ही सही एक पहल करें तो शायद हालत कुछ ठीक हो सकते हैं | इस ब्लॉग को पढ़ने वाले सभी पाठकों से मेरा अनुरोध है कि हर साल कम से कम एक बार अपने गाँव जाएँ वाह कुछ पेड़-पौधे अवश्य लगाएं एवं प्रक्रति का लुत्फ़ उठायें|

पृथ्वी सूक्त ११ में भी कहा गया है कि यदि हम पृथ्वी को प्रकृति और पर्यावरण के सम्बन्ध में सरंक्षण दें तो पृथ्वी हमे भी सरंक्षण प्रदान करेगी जैसे समय पर वर्षा, सर्दी व गर्मी रहेगी | प्रकृति, पर्यावरण और जीव एक दूसरे के पूरक हैं वेदों में प्रकृति को सुख, शांति और समृद्धि का आधार माना गया है | प्रकृति के अनुरूप जीवन तथा त्रुटियों के अनुरूप भोजन को उत्तम बताया गया है |
ऋग-वेद में कहा गया है कि "हे मनुष्यों प्रकृति का स्वागत करो , नए पेड़ लगा कर उत्सव मनाओ नए फूलों के खिलने का आनंद मनाओ प्रकृति जीवन सुधा है , इसे विष में परिवर्तित न होने दो यही जीवन का आधार है आश्रम है और हमारे भूत भविष्य तथा वर्तमान कि पालनहार है "|
पृथ्वी सूक्त में कहा गया है कि "इस पृथ्वी में अपार शक्ति है | इसमें वनस्पतियां, औषधियां एवं सभी प्रकार के जीवन दाई तत्व हैं इसलिए, इसकी संरक्षा करो इसे पुत्रवत संरक्षण प्रदान करो तथा इससे मित्रवत मिलो |

2 comments:

  1. सत्य वचन...... आपका लेखन काफी सधा हुआ प्रतीत होता है मालूम होता है विषय पर शोध किया है| क्या ये आपका पहला ब्लॉग है????

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  2. Hey thank you!!! I was seeking for the particular information for long time. Good Luck ?

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